नामकरण
"विविधा दिशा अन्यत्र इति विदिशा"
पुराणों में इसकी चर्चा भद्रावती या भद्रावतीपुरम् के रुप में है। जैन- ग्रंथों में इसका नाम भड्डलपुर या भद्दिलपुर मिलता है। मध्ययुग आते- आते इसका नाम सूर्य (भैलास्वामीन) के नाम पर भेल्लि स्वामिन, भेलसानी या भेलसा हो गया। संभवतः पढ़ने के क्रम में हुई किसी गलतफहमी के कारण 11 शताब्दी में अलबरुनी ने इसे "महावलिस्तान' के नाम से संबोधित किया है। 17 वीं सदी में औरंगजेब के शासन काल में इसका नाम आलमगीरपुर रखा गया। सन् 1947 ई. तक सरकारी रिकॉडा में इसे "परगणे आलमगीरपुर' लिखा जाता रहा। परंतु ब्रिटिश काल में लोगों में भेलस्वामी या भेलसा नाम ही प्रचलित रहा। बाद में सन् 1952
ई. में जनआग्रह पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा इस स्थान का तत्कालीन पुराना नाम विदिशा घोषित कर दिया।
विदिशा जिले की जानकारी
विदिशा भारतवर्ष के प्रमुख प्राचीन नगरों में एक है। जो हिंदू तथा जैन धर्म के समृद्ध केन्द्र के रुप में जानी जाती है। जीर्ण अवस्था में बिखरे पड़े कई खंडहरनुमा इमारतें यह बताती है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि कोण से मध्य प्रदेश का सबसे धनी क्षेत्र है। धार्मिक महत्व के कई भवनों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने या तो नष्ट कर दिया या मस्जिद में बदल दिया। महिष्मती (महेश्वर) के बाद विदिशा ही इस क्षेत्र की सबसे पुराना नगर माना जाता है। महिष्मती नगरी के ह्रास होने के बाद विदिशा को ही पूर्वी मालवा की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसकी चर्चा वैदिक साहित्यों में कई बार मिलता है। यहाँ इतिहास ने अनेक पीढियों तक अपने चिंह छोड़े। आज संपूर्ण विदिशा- मंडल पर्यटकों एवं दर्शकों की रुचि के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय प्राचीन स्मारकों से भरा पड़ा है।
भूगोल तथा जलवायुमुख्य लेख : विदिशा की जलवायु
इस क्षेत्र की जलवायु अत्यंत स्वास्थ्यवर्द्धक है। कर्क रेखा के आसपास स्थित इस क्षेत्र में न अधिक ठंड पड़ती है, न ही अधिक गर्मी। बारिश साधारणतया 40 इंच होती है। एक किवदंती के अनुसार यहाँ की अजस्र जल देने वाली बदली लंगड़ी है। अतः उन पर दया करके बड़े-बड़े बादल यहाँ जल बरसा जाते हैं। यहाँ कभी सूखा नहीं पड़ता। विदिशा के समीप से ही विंध्य पर्वतों की श्रेणियों का सिलसिला पूर्व से पश्चिम की ओर गया है। ये श्रेणियाँ न तो अधिक ऊँची है, न ही लंबी।
वन संपदामुख्य लेख : विदिशा की वन संपदा
विंध्य पर्वत के आसपास चारों तरफ सैकड़ों मीलों तक उपजाऊ कृषि भूमि है, जो बहुत उपजाऊ मानी जाती है। यहाँ प्राप्त होने वाली उपजाऊ काली मिट्टी की सतह तो कहीं- कहीं 30-40 फीट तक गहरी है। यहाँ गेहूँ तथा चना का उत्पादन विशेष रुप से होता है, लेकिन धान, कपास व बाजरा बिल्कुल नहीं उपजाए जाते।
दर्शनीय स्थलमुख्य लेख : विदिशा के दर्शनीय स्थल
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