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गुरुवार, 14 नवंबर 2019

जिले की जानकारी VJDISHA

VJDISHA  
नामकरण

प्राचीन नगर विदिशा तथा उसके आस- पास के क्षेत्र को अपनी भौगोलिक विशिष्टता के कारण एक साथ दशान या दशार्ण (दस किलो वाला ) क्षेत्र की संज्ञा दी गई है। यह नाम छठी शताब्दी ई. पू. से ही चला आ रहा है। इस नाम की स्मृति अब भी बेतवा की सहायक नदी धसान नदी के नाम में अवशिष्ट है। कुछ विद्वान इसका नामाकरण दशार्ण (धसान ) नदी के कारण मानते हैं, जो दस छोटी- बड़ी नदियों के समवाय- रुप में बहती थी। जहाँ प्राचीन संस्कृत- साहित्य में विदिशा का नाम वैदिस, वेदिश या वेदिसा मिलता है, वहीं पाली ग्रंथों में इसे वेसनगर, वैस्सनगर, वैस्यनगर या विश्वनगर कहा गया है। कुछ विद्धानों का मानना है कि विविध दिशाओं को यहाँ से मार्ग जाने के कारण ही इस नगर का नाम विदिशा पड़ा।

"विविधा दिशा अन्यत्र इति विदिशा"


पुराणों में इसकी चर्चा भद्रावती या भद्रावतीपुरम् के रुप में है। जैन- ग्रंथों में इसका नाम भड्डलपुर या भद्दिलपुर मिलता है। मध्ययुग आते- आते इसका नाम सूर्य (भैलास्वामीन) के नाम पर भेल्लि स्वामिन, भेलसानी या भेलसा हो गया। संभवतः पढ़ने के क्रम में हुई किसी गलतफहमी के कारण 11 शताब्दी में अलबरुनी ने इसे "महावलिस्तान' के नाम से संबोधित किया है। 17 वीं सदी में औरंगजेब के शासन काल में इसका नाम आलमगीरपुर रखा गया। सन् 1947 ई. तक सरकारी रिकॉडा में इसे "परगणे आलमगीरपुर' लिखा जाता रहा। परंतु ब्रिटिश काल में लोगों में भेलस्वामी या भेलसा नाम ही प्रचलित रहा। बाद में सन् 1952


ई. में जनआग्रह पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा इस स्थान का तत्कालीन पुराना नाम विदिशा घोषित कर दिया।



विदिशा जिले की जानकारी

विदिशा भारतवर्ष के प्रमुख प्राचीन नगरों में एक है। जो हिंदू तथा जैन धर्म के समृद्ध केन्द्र के रुप में जानी जाती है। जीर्ण अवस्था में बिखरे पड़े कई खंडहरनुमा इमारतें यह बताती है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि कोण से मध्य प्रदेश का सबसे धनी क्षेत्र है। धार्मिक महत्व के कई भवनों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने या तो नष्ट कर दिया या मस्जिद में बदल दिया। महिष्मती (महेश्वर) के बाद विदिशा ही इस क्षेत्र की सबसे पुराना नगर माना जाता है। महिष्मती नगरी के ह्रास होने के बाद विदिशा को ही पूर्वी मालवा की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसकी चर्चा वैदिक साहित्यों में कई बार मिलता है। यहाँ इतिहास ने अनेक पीढियों तक अपने चिंह छोड़े। आज संपूर्ण विदिशा- मंडल पर्यटकों एवं दर्शकों की रुचि के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय प्राचीन स्मारकों से भरा पड़ा है।



भूगोल तथा जलवायुमुख्य लेख : विदिशा की जलवायु

इस क्षेत्र की जलवायु अत्यंत स्वास्थ्यवर्द्धक है। कर्क रेखा के आसपास स्थित इस क्षेत्र में न अधिक ठंड पड़ती है, न ही अधिक गर्मी। बारिश साधारणतया 40 इंच होती है। एक किवदंती के अनुसार यहाँ की अजस्र जल देने वाली बदली लंगड़ी है। अतः उन पर दया करके बड़े-बड़े बादल यहाँ जल बरसा जाते हैं। यहाँ कभी सूखा नहीं पड़ता। विदिशा के समीप से ही विंध्य पर्वतों की श्रेणियों का सिलसिला पूर्व से पश्चिम की ओर गया है। ये श्रेणियाँ न तो अधिक ऊँची है, न ही लंबी।



वन संपदामुख्य लेख : विदिशा की वन संपदा

विंध्य पर्वत के आसपास चारों तरफ सैकड़ों मीलों तक उपजाऊ कृषि भूमि है, जो बहुत उपजाऊ मानी जाती है। यहाँ प्राप्त होने वाली उपजाऊ काली मिट्टी की सतह तो कहीं- कहीं 30-40 फीट तक गहरी है। यहाँ गेहूँ तथा चना का उत्पादन विशेष रुप से होता है, लेकिन धान, कपास व बाजरा बिल्कुल नहीं उपजाए जाते।



दर्शनीय स्थलमुख्य लेख : विदिशा के दर्शनीय स्थल

ऐतिहासिक नगरी होने के कारण विदिशा की प्राचीन इमारते और स्थापत्य दर्शनीय हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ प्राकृतिक स्थल और धार्मिक महत्व के स्थान भी देखने के योग्य हैं। विदिशा के निकटवर्ती छोटे छोटे नगर अपने में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर समेटे हुए हैं। अतः इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए इनको देखना भी रुचिकर है। प्राकृतिक स्थलों में लुहांगी गिरिश्रेणी विदिशा नगर के मध्य रेलवे स्टेशन के निकट ही स्थित है जहाँ से रायसेन का किला, साँची की पहाड़ियाँ, उदयगिरि की श्रेणियाँ, वैत्रवती नदी व उनके किनारों पर लगी वृक्षों की श्रृंखलाएँ अत्यंत सुदर दिखती है। चरणतीर्थ में च्वयन ॠषि ने की तपस्थली तथा संगम दर्शनीय हैं। ऐतिहासिक भवनों में विदिशा का किला और विजय मंदिर, विदिशा पर्यटकों के लिए रोचक हैं। इसे अतिरिक्त ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के अनेक छोटे नगर विदिशा के पास बसे हुए है जो पर्यटकों को लुभाते हैं। इनमें बेसनगर, जिसे पाली बौद्ध ग्रंथों में वेस्सागर कहा गया है, भद्दिलपुर जो जैनियों के दसवें तीथर्थंकर भगवान शीतलनाथ की जन्मभूमि है, उदयगिरि की गुफाएँ जो 4वीं- 5 वीं सदी पुरानी हैं पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनती हैं। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाओं के समेटे सिरोंज, नंदवंशी अहीर ठाकुरों की भूमि लटेरी, परमारवंशीय राजा उदयदित्य के स्वर्णकाल का प्रतीक उदयपुरा, पहाड़ी की उपत्यका में बसा ग्यारसपुर, ऐतिहासिक नगर शम्शाबाद, बौद्ध स्तूपों के लिए जाना जाने वाला साँची, रंगाई-छपाई कार्य के लिए प्रसिद्ध गंज बासौदा, रमणीय सरोवर के निकट बसा बढ़ोह और सातखनी हवेली के लिए प्रसिद्ध मरखेड़ा विदिशा जिले के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं।

 

 

 


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