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रविवार, 15 दिसंबर 2019

1971 के युद्ध में खरगोन के भी है रणबांकूरे (सफलता की कहानी)

खरगौन | 15-दिसम्बर-2019
 



 

    हमारे देश के एक महत्वपूर्ण युद्ध जो 1971 में पाकिस्तान और भारत के बीच घमासान युद्ध हुआ था। इस युद्ध के परिणाम स्वरूप बांग्लादेश की स्थापना हुई। देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के कठोर परिणामकारी निर्णय से देश के वीर जवानों ने पाकिस्तान की सेना को सरेंडर करने पर मजबुर किया। इस युद्ध में 93 हजार से अधिक जवानों के साथ पाकिस्तान ने सरेंडर किया। इस युद्ध में खरगोन जिले के भी कई योद्धा है, जो आज भी हमारे बीच समाज में है और अपने-अपने क्षेत्र में कहीं न कहीं सेवा दे रहे है। जिले के इन जवानों ने अलग-अलग सेक्टर में अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं दी है। कोई भी आर्टरी तो किसी ने इलेक्ट्रीकल, मेकेनिकल और अन्य तरह की तकनीकी मदद से युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
श्रीकृष्ण ने संभाली थी राडार ऑपरेटिंग की जिम्मेदारी
    खरगोन में कुंदा नगर के श्रीकृष्ण बार्चे जो 1969 में सेना में षामिल हो गए थे। इन्होंने आर्टरी रेजीमेंट में होकर अजनाला सेक्टर में होने वाली गोलाबारी के बीच इस युद्ध में राडार से संबंधित समस्याओं के सहयोग के लिए सेना पर तैनात जवानों की सहायता करते थे। वे बताते है कि राडार ऐसी चीज है, जिससे होने वाले हमले का जायजा लगाया जा सकता है। इसके लिए वे अपने अन्य सहयोगियों के साथ हर समय तैनात रहते थे। 16 साल आर्मी में सेवा देने के बाद जब वे सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद वे बोरावां की हायर सेकेंडरी स्कूल में खेल षिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी। इसके बाद वें यहां से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने परिवार के साथ समय बिता रहे है।
आजाद ने वायरलेस पर कान लगाकर जवानों की मदद की
    इनके अलावा खरगोन के ही आजाद है, जो 1971 के युद्ध में शामिल होकर अपनी सेवाएं दी है। आजाद बताते है कि युद्ध के दौरान उनका काम सेना पर लड़ाई लड़ने वाले जवानों को जो भी सामग्री की आवश्यकता होती थी, उन तक कम समय तक पहुंचाना, उनकी जिम्मेदारी थी। बारामुला सेक्टर के वर्कषॉप में रहकर वायरलेस पर हर समय कान लगाकर जवानों की मदद के लिए तत्पर रहे। सैनिकों को न सिर्फ सषस्त्रों की आवश्यकता होती है, बल्कि ऐसी आवष्यक सामग्री होती है, जो उन तक पहुंचानी पड़ती है। जवानों को सामग्री पहुंचाना और फिर उस सामग्री एकत्रित करके दूसरे जवानों को सौंपना एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ठंड के दिनों में उन्होंने सैनिकों को मफलर, टोली, जैकेट कई तरह की सामग्री पहुंचाई है। 1982 में सेवानिवृत्त होने के बाद आजाद ने अपने पैतृक कार्य फूलों के कारोबार को आगे बढ़ाया है। आजाद कहते है कि युद्ध जवान नहीं, बल्कि देश जीतता है, जो देश के हर नागरिक को गौरवांवित करता है। किसी देश से युद्ध जीतना जिंदगी का गर्व बन जाता है।



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