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शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

बुवाई के पहले कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को दी गई तकनीकी सलाह

होशंगाबाद | 


 

 

    जनपद पंचायत सिवनी मालवा के सभाकक्ष में गुरुवार 29 अक्टूबर कृषक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र पवारखेड़ा के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कृषकों को बुवाई के पूर्व आवश्यक  तकनीकी सलाह प्रदान की गई। कृषक संगोष्ठी में कृषि वैज्ञानिक  डॉक्टर के के मिश्रा द्वारा कृषकों को चना फसल का न्यूनतम लागत लगाकर अधिक उत्पादन लेने की तकनीक की विस्तारपूर्वक जानकारी  दी गई।उन्होंने उपस्थित कृषकों को चने की उन्नतशील प्रजातियां, बीज उपचार  तकनीक (ट्राइकोडरमा का उपयोग) अनुशंसित बीज दर, जैव उर्वरक राइजोबियम व पीएसबी कल्चर का प्रयोग ,संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग व पौध संरक्षण के उपायों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि चने की फसल में आने वाली उखटा नामक बीमारी के सफल नियंत्रण हेतु किसान भाई 2.5 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा  बिर्डिह नामक  फफुंदनाशक का उपयोग खेती की अंतिम जुताई  के समय बायोमास तैयार कर प्रयोग करें , जिससे चने में उखटा  नामक बीमारी का नियंत्रण संभव है। वही चने की फसल में हेलियोथोसिस नमक इल्ली  से बचाव हेतु किसान भाई  प्रति हैक्टेयर 45- 50  टी आकार की खुटिया  बुवाई के 15- 20 दिन बाद लगाकर सफलतापूर्वक नियंत्रित कर सकते हैं। इस प्रकार से रोग व कीट प्रबंधन में लागत भी कमी  आएगी तथा पर्यावरण को विषैला होने से भी रोका जा सकेगा। उन्होंने बताया कि चने की फसल में कीट प्रबंधन हेतु किसान भाई चना +सरसों की अन्तवर्तीय  खेती, लाइटट्रैप का प्रयोग आदि तकनीक अपनाकर भी कीट  व्याधियों का नियंत्रण कम लागत में कर सकते हैं।
     कृषकों के द्वारा गेहूं फसल की अधिकतम पैदावार लेने के उपायों के संबंध में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में डॉक्टर मिश्रा द्वारा बताया गया कि सर्वप्रथम किसान भाई क्षेत्र के लिए अनुशंसित किस्मों जैसे जी डब्ल्यू 451, पूसा तेजस का चयन करें, संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करें।(120 किलोग्राम नत्रजन , 60 किलोग्राम  फास्फोरस व 40 किलो ग्राम पोटाश) का प्रयोग करें। गेहूं में प्रथम सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद आवश्यक रूप से करें, खरपतवार नियंत्रण भी आवश्यक रूप से करें। यदि खेत में दीमक का प्रकोप दिखाई देता है क्लोरोपायरीफॉस टी .सी का प्रयोग किया जा सकता है। डॉ मिश्रा द्वारा संगोष्ठी में उपस्थित कृषकों को बताया गया कि खेत में नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है तथा फसलों के लिए लाभदायक जीव भी नष्ट हो जाते हैं। जिससे फसलों की उत्पादकता में भी कमी आती है व पर्यावरण को भी नुकसान होता है। किसान भाई नरवाई जलाकर उसका समुचित प्रबंधन कर जीवांश में बदलें।
    कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा कृषकों को प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के बारे में विस्तार पूर्वक बताते हुए अनुरोध किया गया कि लघु व सीमांत श्रेणी के कृषक पीएम किसान मानधन योजना में पंजीयन कराकर लाभ प्राप्त करें। कृषक संगोष्ठी में डॉक्टर के के मिश्रा ,अनुविभागीय अधिकारी राजस्व श्री अखिल राठौर, उप परियोजना संचालक आत्मा श्री गोविंद मीणा सहायक संचालक कृषि श्री योगेंद्र बेड़ा, अनुविभागीय अधिकारी श्री राजीव यादव, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्री संजय पाठक तथा विकासखंड के समस्त ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी उपस्थित रहें।



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