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सोमवार, 16 नवंबर 2020

एक इष्ट के रूप में पूजित बिरसा मुंडा पूरे मुंडा समाज के साथ-साथ देश के आदिवासी समाज की अस्मिता बन गए "विशेष लेख"

हरदा | 


 

 

      सिंहभूम प्राचीन बिहार का वह भूभाग है जो वर्तमान में झारखंड के नाम से जाना जाता है, यहां की प्रमुख नगरी रांची 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में बिरसा विद्रोह की साक्षी रही है। बिरसा उस महानायक का नाम है जिसने मुंडा जनजाति के विद्रोह का नेतृत्व किया था।
              एक इष्ट के रूप में पूजित बिरसा मुंडा पूरे मुंडा समाज के साथ-साथ देश के आदिवासी समाज की अस्मिता बन गए। बिरसा ने पूरे जंगलों की प्राण वायु को संघर्ष की ऊर्जा से भर, सबके जीवन का आधार बना दिया था। 15 नवंबर 875 को जन्मे बिरसा मुंडा के पिता सुगना मुंडा तथा माता करणी मुंडा खेतिहर मजदूर थे।
             बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। कुशाग्र बुद्धि के बिरसा का आरंभिक जीवन जंगलों में व्यतीत हुआ। उनकी योग्यता देख उनके शिक्षक ने बिरसा को जर्मन मिशनरी स्कूल में भर्ती करवा दिया। इसकी कीमत उन्हें धर्म परिवर्तन कर चुकानी पड़ी। यहां से मोहभंग होने के बाद बिरसा पढ़ाई छोड़ चाईबासा आ गए। देश में स्वाधीनता की आवाज तेज होने लगी थी। बिरसा पुनः अपने आदिवासी धार्मिक परंपरा में वापस लौट आए।
             अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीतियों के द्वारा पहले जंगलों का स्वामित्व आदिवासियों से छीना, फिर बड़े जमींदारों ने वनवासियों की जमीन हड़पना शुरू की। इस अन्याय के विरुद्ध बिरसा मुंडा ने ब्रिटिशों, क्रिश्चियन मिशनरीयो, भूपतियों एवं महाजनों के शोषण व अत्याचारों के खिलाफ छोटा नागपुर क्षेत्र में मुंडा आदिवासियों के विद्रोह (1899-1900) का नेतृत्व किया।
             3 मार्च 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल में बंद कर दिया। जेल में शारीरिक प्रताड़ना झेलते हुए 9 जून 1900 को बिरसा वीरगति को प्राप्त हो गए। बिरसा मरकर भी अमर है। छोटा नागपुर के जंगलों में आज भी बिरसा लोकगीतों में जीवित है।



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