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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

संत रविदास के विचारों की वर्तमान समय में प्रासंगिकता विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित

 

सागर | 26-फरवरी-2021
    पं. दीनदयाल उपाध्याय, शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर में संत रविदास के विचारों की वर्तमान समय में प्रासंगिकता विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित किया गया। वेबीनार समन्वयक डॉ. अमर कुमार जैन, आयेाजन सचिव डॉ. इमराना सिद्धीकी, सह-समन्वयक डॉ. संदीप तिवारी रहे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि टी आर थापक कुलपति  महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, छतरपुर ने कहा कि संत रविदास के विचारों की प्रासंगिकता तब भी थी और आज भी हैं जिस समाजिक समरसता के विचार अपने दोहों में रविदास ने दिये उनके उदाहरण आज दूसरे नहीं मिलते हैं। अध्यक्षता कर रहे डॉ. जी एस. रोहित प्राचार्य ने कहा कि रविदास को राम भक्ति ने अमरता प्रदान की सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं इसलिए उनमें भेद करना अच्छी बात नहीं है। कर्म की प्रधानता के वशीभूत होकर संत एक नये विश्व का निर्माण करते हैं। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री नानकचंद जी-सहायक निदेशक, राजभाषा, दिल्ली ने कहा कि संत रविदास ने हमें बताया कि भक्ति में प्रवेश के लिए हमें अपने चरित्र को उज्जवल बनाना पड़ता है संत का चरित्र आत्म आलोचना का होता है जिससे समाज को दिशा मिलती है। संत सीमा से परे होते हैं लेकिन वे सार्वजनिक होते हैं तथा संत के वचन ही उनका चरित्र होता है। डॉ. सुरेन्द्र पाठक-प्राध्यापक, गुजरात विद्यापीठ ने कहा कि मीराबाई के पदों में भी रविदास के पदों का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है उन्होंने महिलाओं को भी दीक्षित कर भक्ति परंपरा में शामिल किया। जब सभी के लिए ब्रम्ह एक है तो समाज का विभाजन विभिन्न जातियों में करना हमारा दुर्भाग्य है हमारी संत परंपरा किसी भी प्रकार के विभाजन को मान्यता नहीं देती। डॉ. कन्हैया त्रिपाठी-पूर्व ओएसडी राष्ट्रपति भवन ने कहा कि संत रविदास ने अपने पूरे जीवन में लोकचेतना के उत्कर्ष के लिए कार्य किया वास्तव में संत के रूप में वही जन्म लेता है जिसने प्रारंभ में बहुत पुण्य कमाये हों जिस प्रकार रवि किसी एक का नहीं है उसी प्रकार संत रविदास भी किसी एक के नहीं हैं। स्वागत भाषण डॉ. संदीप तिवारी-सह समन्वयक ने दिया। कार्यक्रम का संचालन वेबीनार समन्वयक डॉ. अमर कुमार जैन ने किया तथा आभार आयोजन सचिव डॉ. इमराना सिद्धीकी ने माना।

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