*गणेश जी के गुणों व शक्तियों को अपनाने के संकल्प के साथ करें विसर्जन- ब्रह्माकुमारी रुक्मणी दीदी
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मंसापूर्ण हनुमान मंदिर के पास स्थित सेवा केंद्र पर विघन विनाशक श्री गणेश का पर्व धूमधाम से मनाया गया जिसमें ब्रह्माकुमारी रुक्मणी दीदी ने गणेश जी के आध्यात्मिक अर्थ बताते हुए कहा कि भारत देश के त्यौहार यहां की संस्कृति की विशेषताएं हैं। भारत की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के कारण यह दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है और इसी वजह से इसे आध्यात्मिक गुरू व विश्व गुरु का दर्जा दिया गया है। जिसने दुनिया की सोच को एक नई दिशा दी है इन त्यौहारों के पीछे जीवन के गहरे सिद्धांत छिपे हैं परंतु समय के साथ लोग उनके आध्यात्मिक रहस्य को भूल गए और वह मात्र परम्पराएं बनकर रह गई। हम परमात्मा से संबंध जोड़कर उन गुणों व शक्तियों को अपने जीवन में समाकर जीवन के विघ्नों पर विजय पा सकते हैं। सभी से यह अनुरोध भी किया कि यदि गणेश उत्सव को सार्थक बनाना है तो विसर्जन के साथ हमें गणेश जी की विशेषताओं को धारण करने का
संकल्प भी लेना होगा। दीदी ने गणपतिजी के बड़े कान, चौड़ा माथा, छोटी आंखें, लंबी सुढ, छोटा मुंह, बड़ा पेट, एक दांत, चूहे की सवारी, उनके हाथों के अलंकार कुल्हाड़ी, रस्सी, मोदक और वरद हस्त के आध्यात्मिक रहस्यौ को बताते हुए कहा कि उनका भव्य मस्तक बुद्धि की विशेष विशालता और विवेकशीलता का, बड़े कान उनके श्रवण का अर्थात कम बोलने अधिक सुनने का, छोटी आंख एकाग्रता का, एक दांत बुराइयों को मिटाने व अच्छाइयों को धारण करने का, सुण्ड कार्यकुशलता व स्वयं को मोल्ड करने का प्रतीक है। जैसे हाथी को कुछ भी मिलता है तो वह महावत को समर्पित कर देता है उसी प्रकार हमें भी अपने जीवन के मान, सम्मान सभी प्राप्तियां को परमात्मा को समर्पित कर मन की इच्छा से परे निर्माण भाव के साथ रहना चाहिए, बड़ा पेट सामाने की शक्ति की प्रेरणा देता है कि हम परिवार में एक दूसरे की बातों को सहन करें व समा लें। चूहे की सवारी अर्थात विकारों पर विजय प्राप्त करने, कुल्हाड़ी का तात्पर्य सभी बंधनों को काटने से हैं अर्थात आध्यात्मिकता को अपनाने में जो भी देह, पदार्थ, व्यक्ति, वैभव के विघ्न आते हैं उस पर जीत प्राप्त करना, रस्सी अनुशासन में रहने, लड्डू व मोदक मुदित भाव में रहने की प्रेरणा देता है। इस अवसर पर गणेश जी के निमित्त बहनों ने मोदक बनाकर भोग लगाया अधिक संख्या में माता बहनों ने कार्यक्रम का लाभ लिया।
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